गुजराती दलित साहित्य हिन्दी अनुवादमें
Wednesday, August 17, 2011
उषा मकवाणाकी कविता
हरिजन हो कर तो देख
रानीपुत्र होकर तूने अवतार लिया कई बार,
नारीकी कोखसे तो अब जनम लेकर देख.
चक्र,धनुष्य और तीर चलाये हैं बहुत,
हाथमें लेकर झाडू सड़क पर निकल कर तो देख.
हरि कहलाना तो बहुत सहल है हरि,
केवल एक ही बार हरिजन होकर तो देख.
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