गुजराती दलित साहित्य हिन्दी अनुवादमें
Tuesday, August 16, 2011
महेशचन्द्र पंड्याकी कविता
बंदूकें बो दें
अरी रेवली
चल आ,
उस बरगदवाले
खेतमें
इस साल तो
बो
देते हैं बंदूकें.
क्यों मुई देवली
क्यों ऐसा रे?
तुझे नहीं मालूम ?
महात्मा गांधीके सीनेमें
गोली दाग दी
उसके बाद तो
घर घर
उग आये हैं
नासपीटे
नथुए.
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