Monday, August 22, 2011

नगीन परमारकी कविता



मेरा बाप

इस देशका है दोष
जिसने बापको मेरे
इस देशकी भूमि पर  
उन्नत मस्तक
जीने न दिया
उम्रभर.

उम्रभर जिसने पीया पसीना
जब प्यास लगी
(किसीका न खून पीया)
रोटीके टूकडेमें
जी रहे जिंदगी मेरे बापको
(किसीकी न रोटी छीन ली)

बाप मेरा जिसने लिया नहीं सरकारसे
सर्टिफेकट(बिलकुल जूठा
स्वातंत्र्यसेनानी होनेका
न ही खाया कोई पेंशन.
न ही जिसने कभी
हाथ जोड़कर  वोट मांगकर
देशकी जनताको उल्लू बनाया.

बाप मेरे खानेपीनेके किसी सामानमें
कोई मिलावट कभी न कि,
न किसी जानको जोखिममें डाला.
जिंदगीमें  कभी न फैलाया हाथ
ना किसीकी बहन-बेटीकी इज्जत पे हाथ डाला.
फिरभी लानत है ए उस देशकी कातिल प्रजाको
जिसने बापको मेरे
इस देशकी भूमि पर  
उन्नत मस्तक
जीने न दिया
उम्रभर.

बाप मेरा जिसने उम्रभर
कभी न फैलाया हाथ किसीके सामने,
न ही याचना कि दयाकी
जिनेकी खातिर न कभी वो गीडगीडाया
फिर भी ऐसे मेरे बापको
इस देशके नापाक लोगोंने
कभी जीने न दीया
उन्नत मस्तक
उम्रभर.
पुत्र मेरा
आगे चलकर
कभी न कहेगा ऐसा.

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