शस्त्रसन्यास
आओ, हम शस्त्र रख दें
और गोलमेजी परिषद आयोजित करें.
हमारा कोई देस नहीं, कोई भेस नहीं,
जोतनेको खेत नहीं,रहनेको घर.
आर्यावर्तकालसे आज तलक तुमने
घासका तिनका भी छोड़ा नहीं हमारे लिए.
आओ, हम वह सब भूल जाएँगे,
तुम गांवमें चुनी हुई दीवारें गिरा देनेके लिए तैयार हो?
हम दूधमें शक्करकी तरह मील जायेंगे.
तुम्हारी द्रौपदी अगर स्वयम्वरमें हमारे गलियाको वरमाला पहना दे
तो वह सह पाओगे?
और हमारी रइली अगर चित्रांगदाकी तरह नए लिबासमे आये
तो तुम्हारा अर्जुन उसे स्वीकार करेगा?
आओ, हम मुर्दा ढोरढंगर उठा ले जानेके लिए
बारी तय करें , खुश हैं न?
आओ, हम तुम्हारी जूठन खानेके लिए राजी हैं,
हमारे यहाँ शादीब्याहमें जूठनके लिए तुम आओगे?
आओ, हम निकाल दें संविधानसे रिज़र्वेशनकी सब धाराएं.
हमारे छगन-मगन ओपन कम्पीट कर लेंगे.
लेकिन उन्हें कान्वेंट स्कूल्समें दाखिला लेने दोगे?
आओ,शिड्यूलसे पन्ने फाड़ देते हैं
लेकिन अब हमें त्रिवेदी, पटेल होने दोगे?
आओ , हम शस्त्र रख देते हैं
और देशकी रसाल भूमिको साथ मिलकर जोतें.
लेकिन हमें खलिहानका आधा हिस्सा दोगे क्या?
ब्रेइनवाश
मुझे थोड़ा गंगाजल देना
और उसमें मिलाना सात पवित्र नदियोंका पानी .
मुझे इस चित्तपावनकी खोपड़ीसे बाहर धंस आये
दिमागको घीसघीसकर धोना है.
मुझे ताताकी डीटर्जंट केक देना .
उसके दिमागके एक एक कोषको मैं साफ़ करना चाहता हूँ.
सदियोंसे जमे विचारोकी जंगको मैं घीसघीसकर निकालना चाहता हूँ.
यह भूदेवका श्रवणकेन्द्र.
वेदकी रूचाएं ,वाल्मिकीका अनुष्टुपऔर उपनिषदके मन्त्र
साथसाथ मनुस्म्रुतिके श्लोक भी यहाँ टेइप हुए हैं.
भूदेव, उपनिषदोंके मंत्रोच्चार गंगातट पर प्रातःसंध्याके वक्त तुम कर सकते हो.
लेकिन ये मनुके स्वस्तिवचनकी अब तुझे कोई जरूरत नहीँ.
यह भूदेवका दृष्टि केन्द्र.
जिसने मुझे सदियोंसे ब्लेक आइडेंटिटी दी है.
भूदेव, देखो शरद्के आकाशका नील रंग
अरण्यका हरा रंग
अरे, इंद्रधनुष्यके सातों रंग देखो.
लेकिन मेरी त्वचाका कला रंग देखनेकी क्या जरूरत है?
यह भूदेवका घ्राणकेन्द्र.
भूदेव इस पृथ्वी पर मोगराके फूल हैं
सूंघनेके लिए.
और बदबू तो भ्रष्टाचार, जमाखोरी और जूठकी होती है
तूझे मेरी ही बदबू क्यों आती है?
यह भूदेवका स्पर्शकेन्द्र.
शकुंतलाके श्वासका हल्कासा स्पर्श होते ही वह हरा हो जाता है
जब कि मेरे तो सायेके स्पर्शमात्रसे वह लाल हो जाता है.
भूदेव हम कंधेसे कंधा मिलाकर युद्ध लड़े होते तो
इतिहासमें कोई हमें गुलाम न बना सका होता.
इस कोषमें रिज़र्वेशनके खिलाफ रोष
यहाँ घृणा, यहाँ तिरस्कार, यहाँ दुर्वासाका कोप,
यह श्रेष्ठताका अहम.
अभी एक और डीटर्जंट केक देना
मैं उसके एक एक कोषको चौकस धोना चाहता हूँ.
भूदेव, दही भी देर तक पड़ा रहता है तो बिगड जाता है
तुम्हारा दिमाग तो वेद्कालसे आजतक जैसे थे रहा है.
कितना बिगड गया, सड गया, गंदा हो गया है.
अब और कांवड भर कर ले आओ गंगाजल
और सीतासप्ता सरस्वतीका जल.
मंदिरप्रवेश मत करो दोस्तो
मंदिरप्रवेश मत करो दोस्तो
रुक जाओ, उस मंदिरकी सीढ़ीयों पर पड़ी है
हमारे पुत्रकी लहुलुहान देह.
बगलमें ही पड़ी है हमारी पुती,निर्वस्त्र,अर्धमृत,
छिन्नविच्छिन्न है उसका रूप.
उस मंदिरके विशाल गुम्बदसे आ रही है
हमारे जलाए गए हरे हरे धानकी गन्ध.
हमारे महान पूर्वजोंने सिंधुजलसे प्राप्त किये थे
उन शब्दोंको हमसे छीनकर
उन कसाइयोंने गढ़ें हैं मन्त्र तंत्रके तावीज .
हमारे हरेहरे वन भस्म कर दीये थे जिसमे जलाकर
उसी आगमें वे शब्दको होमते हैं.
उन सूर्यवंशीयोंके पाषाणशिल्प
आज मुस्कुराते हैं मंद मंद.
वनमे घूमते मोरके पंखसे
नोच लिए हैं उन्होंने पिच्छ
जिससे वे हवा देते हैं
जल्लादोंके श्रमित अंगोंको.
उन्होंने सुवर्णपत्रसे छिपा दीये हैं
दीवारों पर लगे हत्याओंके दाग.
सुवर्णकलशोंसे गगनचुम्बी बनाये हैं उन्होंने शिखर.
उन शीलाओंके असह्य बोज़ तले दफ्न हैं
हमारे पितृओंके देह.
प्रवेश मत करो दोस्तों, रुक जाना,
कत्लगाहमें कदम भी मत रखना, दोस्तों.
गाँव छोड़ते हुए
हल जोतकर खेत जाते हुए
रास्तेमें पड़ती हैं यह नदी.
अब वह कभी भी मिलेगी नहीं.
छप्पनिया अकालसे पूर्व ही
हम पैदा हुए थे, पनपे थे
गांग सिवानके बरगद्की तरह.
इस गांवमें आंधीयाँ कभी उखाड न् सकीं हमें
लेकिन उन लोगोंके पास तो थे फौलादी कुल्हाड़े .
सूरज डूबने तक तो उन्होंने
हमारे धरतीसे जुड़े पांव धडाधड काट डाले.
ज़ुग्गीयाँ
मेलेके हरे पीले लिबास
कांसेकी दो-एक तासलीयाँ
सबकुछ छीन लिया , जला डाला उन लूटेरोंने.
नदीका नारियल जैसा जल अन्जुरीमें भर कर पीते थे,
कहा-
‘हमारा जल अपवित्र होता है, खबरदार एक बूँद भी पीया तो ,‘
उन्हें कच्चे लहूमाँससे बढ़कर और क्या पसंद है?
फिर भी
उन्होंने हमारे लिए घासकी पत्तियाँ तक रहने न दी.
वे एक कदम आगे बढ़ न् सके.
नदी रोक रही हैं हमें .
लेकिन वहाँ दूर ज़ुग्गीओंकी आगमे
देखो, कितने भेडिये घुर्राते हैं?
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