नया इतिहास
खोलना मत
इस इतिहासके पन्नोंको
उसके एक एक पन्ने पर
तेरे पुरखोंके कानमें डाले गए
धधकते सीसेके समंदर बह रहे हैं.
उसके पन्ने पन्ने पर है
तेरे पुरखोंकी काट ली गयी
जुबांके मूक शब्दोंकी अर्थशून्य जीजीविषा.
उसका एक एक अक्षर
तेरे पुरखोंकी हथकड़ीमें कैद
हाथपाँवकी सिकुड़ी हुई चेतना
उसमें हैं कितने आक्रमण
कलिंग,हल्दीघाटी,बक्सर,पानीपत
प्लासी जैसे युद्ध और विश्वयुद्ध.
यहाँ हैं
सिर्फ गुमशुदा अस्तित्वकी
गीद्ध और श्वानकी खींचातानीके बीच
बजता
रेतके टीलोंकी सीसकीयोंका ढींढोरा.
खोलना मत इस इतिहासके पन्नोंको
तुझे तो इतिहास लिखना है.
***
धुआँ
देखो
कितना धुआँता है
धुआँ.
एक साथ कितनी ही मशालें
लगा देती हैं आग
और दूर खड़े रहकर
देखती रहतीं हैं
तमाशा.
आग बुझाने की कोशिशमें
कितने ही साये
टकराते हैं
और पिघल जाते हैं
धूल और पानीमें.
उन्हों ने तो
सिर्फ इतना ही कहा था
हमें चाहिए
इंसान के अधिकार
लेकिन देखिए
अब भी
कितना धुंआता है
धुआँ
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