ज्योति बन जाय ज्वाला
बाँट दिए हैं सारे नदियाँ और नाले
पहरा लगा हुआ है चारो तरफ, लगा दिए है ताले.
बदल न सके वे खूनका रंग लेकिन
किसीको बनाया गोरा, किसीको काला.
धर्मके नाम पर वो करते है पाखण्ड , अधर्म का अखाडा
इनसान के आगे इंसान करता है बन्दर जैसी हरकत .
छीन लिए हमने शस्त्र और शास्त्र भी
संस्क्रृत होने के ढ़ोंगमें वह फेर रहा है माला.
कब तलक रखेंगे नजर नीचे
रखें अमर आशा कि ज्योति बन जाय ज्वाला
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