Saturday, October 23, 2021

नगीनचन्द्र डोडिया की कविता


मेरा बाप

इस देशका यह दोष है
जिसने बापको मेरे
इस देशकी भूमि पर  
सिर उठाकर
जीने न दिया
उम्रभर.

उम्रभर जिसने पीया पसीना
जब भी प्यास लगी
(किसीका न खून पीया)
रोटीके टूकडेमें
जी रहे जिंदगी मेरे बापको
(किसीकी न रोटी छीन ली)

बाप मेरा 
जिसने लिया नहीं सरकारसे
सर्टिफेकट (बिलकुल जूठा)
स्वातंत्र्यसेनानी होनेका
न ही खाया कोई पेंशन.
न ही जिसने कभी
हाथ जोड़कर  वोट मांगकर
देशकी जनताको उल्लू बनाया.

बाप मेरा
जिसने  खाद्यान्नमें मिलावट कभी न कि,
न किसी जानको जोखिममें डाला.
जिंदगीमें  कभी न फैलाया हाथ
ना किसीकी बहन-बेटीकी इज्जत पे हाथ डाला.
फिरभी लानत है  इस देशकी कातिल प्रजाको
जिसने बापको मेरे
इस देशकी भूमि पर  
सिर उठा का
जीने न दिया
उम्रभर.

बाप मेरा 
जिसने उम्रभर
कभी न फैलाया हाथ किसीके सामने,
न ही याचना कि दयाकी
जिनेकी खातिर न कभी वो गीडगीडाया
फिर भी ऐसे मेरे बापको
इस देशके नापाक लोगोंने
कभी जीने न दीया
सिर उठा कर
उम्रभर.

पुत्र मेरा
आगे चलकर
लेकिन
कभी न कहेगा ऐसा.

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