Thursday, November 10, 2011

शंकर पेंटरकी कविता



क्यों रे बे

क्यों रे बे
इतने हो गए हो
मेरे सामने चलते
तुझे जरा भी डर नही स्साले,
जा तेरी बस्तीमें और पूछ
बताएँगे तुजे कौन हूँ मैं.
बापको तेरे नीमसे बांध
डंडेसे ठोका था दनादन.
बूढियाँ आयीं थीं मुहल्लेसे तेरे
मान-मनुहार करके छुडाया था .
मटकी ले कर आना अब तू
छाछ मांगने गांवमें स्साले
जाकर यहांसे लगवाऊंगा मुनादी
बंद कर दो दहाड़ी उनकी.
पुलिस पटेल, सरपंच मेरा,
पटवारी और कारकुन  मेरे,
गांवकी पूरी चौपाल मेरी
तालुकेका फोजदार मेरा
देख ले पूरा जिला मेरा
बडेसे बड़ा मंत्री मेरा
दिल्ली तक है शान मेरी
कौन है तेरा कौन है तेरा
कौन है तेरा कौन है तेरा
चाहूँ तो चीरके  रख दूं  
क्यों रे बे इतने
मेरे सामनेसे चलते तुजे
जरा भी डर न लगा?




कालिया ढोली



ढोल सिरहाने बरगद तले सोता है वह कालिया ढोली.

प्रजातंत्रमें शासकको चुननेवाला वह कालिया ढोली.


सोलह सिंगार करके गोरियाँ ,चिथडोंसे लिपटा वह कालिया ढोली.

गरबा घूमतीं गोरियाँ तब ढोल बजाता वह कालिया ढोली.

नाच नचाता वह कालिया ढोली.


सूरमाओंमें शोर्य बढाता, बूंगिया बजाकर वह कालिया ढोली..

मंगल कार्यमें मुहूर्तबेला आंगनमें रहता वह कालिया ढोली.


अन्तिमबेला स्मशानजानेवालोंके साथ नंगे पाँव वह कालिया ढोली.

मुर्दोंके कफन ओढ़नेवाला वह कालिया ढोली.


साफ़ झाड़ूसे गलियाँ करता वह कालिया ढोली.

जूठन मांग कर पेट भरता वह कालिया ढोली.


गालियाँ तू-तू सहनेका आदी हो गया वह कालिया ढोली.

अन्नदाता माईबाप हमारेहाथ जोड़ता वह कालिया ढोली.


जूता मारा, वापस देता साफ़ करके वह कालिया ढोली.

बेकार बातों पर भी खीखीयाता ,चापलूसी करता वह कालिया ढोली.

आँख जरासी फरकी साहूकारकी, सिहर उठता वह कालिया ढोली.

पैसा न मिलता फिर भी रातदिन बेगार उठाता वह कालिया ढोली.


मिट्टी-गारा घासफूस झुग्गीमें रहता वह कालिया ढोली.

सब दुखोँकी एक दवा, घटाघट दारू  पीता वह कालिया ढोली.


बेकसूर बीबी बच्चोंको पीटता  वह कालिया ढोली.

प्रजातंत्रमें शासकको चुननेवाला वह कालिया ढोली.






चैन कहाँ



बसमें बैठे

गंवईका
सबसे पहला सवाल,
‘कौन हैं साहब?’
पूछ लेगा गांव,
पूछ लेगा नाम
पूछ लेगा दूसरी हजार बातें.
फिर भी उसे चैन कहाँ.
दिल उमंडा जावे है.
रह रह कर पूछता है-
‘कौन हैं साहब?
कौन बस्ती
किस घर जाना है?
उसके दिलमें गजबके गुब्बारे उड़ते रहते हैं.
रह रह कर
जाननेके लिए जाति
वह प्रश्नोंके पर्बत ऊपर-तले कर लेता है.
लेकिन जब उसे पता चलता है कि
इसका तो जजमान है झाडूवाला
उसे लगता है जैसे विजलीका झटका,
वह चुप हो जाता है,
नाक चढ़ाकर, मुंह बनाकर
माथा फेर लेता है
और बच्चू बंद कर देता है
आगे कुछ भी पूछ्नेका.

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