यहाँ
मैंने पीया है यहाँ , तुमने ने भी दूध पीया है वहाँ.
यही एक द्वार है , वही द्वारसे ही
मैं भी आया हूँ यहाँ ,तुम भी आये हो यहाँ.
एक संज्ञाने कैसा अड्डा जमाया है यहाँ
एक संज्ञाने नीलाम किया मेरे इज्जतको
एक संज्ञाने तुम्हें फुलाया है गुब्बारेकी तरह.
भूमि पर तो सामान ही चलाया है रथ यहाँ
यह अलग है कि मेरा सर खुला, छत्रहीन
तुमने सजाया है मोरमुकुट केशहीन सर पर यहाँ.
भोली समज पर दरिया पार किया है यहाँ,
एक मामूली असलियत पाते बरसों बीते
छद्मरंगी निम्न बुदबुदेने बनाया है तुम्हें.
तुमने मुझे, निहीतको सपनेमें जलाया है यहाँ.
मैं जल जाऊँगा इधर, तुम भी भस्म हो जाओगे उधर
तुमने मुझे, आग्नेयको ज्वालासे जगाया है यहाँ.
विरासत
बासी, पुरानी, बन्द हवा, विरासतमें मिली .
बेबस, प्रार्थना, दुआ , विरासतमें मिली.
छतकी जगह आकाश मिला जंग लगा हुआ,
भयकी दीवार, दिशा विरासतमें मिली .
सूख गयी है जो पीठ पर प्रस्वेदकी नदी
आँखोंमें बस खाली कुआँ , विरासतमें मिला.
छटपटाती प्यास आंगन, कुलबुलाती भूख घर
मन चुपके चुपके रोना , विरासतमें मिला.
कराहती रही जहाँ बिस्मिल अस्मिता
लहुलुहान वही कोना , विरासतमें मिला.
कितने ही विषधारी फूँफकारते रहे,
काली काली वह मंजुषा , विरासतमें मिली.
सूरज समान होकर आओ कि नष्ट कर दें
दुस्वप्न, गहन निशा विरासतमें मिली
एकलव्य
नितान्त सौम्य हूँ, सरल सौंदर्य द्रव्य हूँ,
उद्दात्त हूँ, भव्य हूँ, मैं एकलव्य हूँ.
मेरा ही गंतव्य हूँ मैं, मैं एकलव्य हूँ.
निष्ठाका पंचगव्य हूँ, मैं एकलव्य हूँ.
रख सकता हूँ चूप श्वान कोई चोटके बगैर
शर-शब्दका नैपूण्य हूँ, मैं एकलव्य हूँ.
युगोंका अन्धकार पी कर हुआ हूँ पुष्ट
सूरज समान दिव्य हूँ, मैं एकलव्य हूँ.
अंगूठा-शून्य शौर्यसे रक्षा तुम्हें भी पार्थ,
मैं पूरा ठोस मानव्य हूँ, मैं एकलव्य हूँ.
शताब्दियोंका साथ रहा फिर भी न समज सका ,
तेरा वही तो वैफल्य है, मैं एकलव्य हूँ.
छलना तुम्हारी द्रोणकी, समज चुका हूँ मैं ,
सरापा अब मैं नव्य हूँ, मैं एकलव्य हूँ.
खोदो जरा जमीन, नजर आएगा निज द्वेष
मैं काव्य हूँ, मैं कव्य हूँ, मैं एकलव्य हूँ.
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