Saturday, May 16, 2015

निलेश काथडकी कविता

छूआछूत


 


















तेरे दो हाथ है
मेरे भी  .

तेरे दो पैर है
मेरे भी .

तेरे आँख,कान, नाक और मुँह है
मेरे भी

 तुम बोलते हो
मैं भी .

तेरा नाम है
मेरा भी .

तुम साँस लेते हो
मैं भी .

तुम इंसान हो
मैं भी .

फिर भी कितना फर्क है
तुम गाँवके अन्दर  और मैं गाँव बाहर
और दोनोंके बीच
रहती है छूआछूत

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