Sunday, October 24, 2021

महर्षि ब्रह्म चमार की कविता


निश्चय

मेरे आँसु की एक बूँदकी कीमत
खून के जितनी
लगायी गयी
तब समझ में आया 
कि यहाँ तो
खून की नदियां बह रही है.

वाणी के ज़ख्म
और 
चाबुक के प्रहार.
मेरी देह है
ऐसा एहसास
कितने ही साल के बाद
आज मुझे हो रहा है.

वही अंतिम घर है मेरा.
अब जो खून बह गया है
उसे इतिहासमें मढ़ देना है,
मैंने किया है यह निश्चय!

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